PADANGUSTHASANA | पादांगुष्ठासन
पादांगुष्ठा का अर्थ है पैर का अंगूठा। इसलिये कि एक पैर के अंगूठे पर सम्पूर्ण शरीर का भार होता है, इस कारणवश इसे ‘ पादांगुष्ठासन’ कहते हैं।
▪️पादांगुष्ठासन की विधि -
सर्वप्रथम आप जमीन पर पंजों के बल उकड़ूं बैठ जायें। फिर घुटनों को थोड़ा आगे की ओर झुकाकर एक पैर के पंजे की एड़ी को गुदा और अण्डकोष के बीच में लगाकर उसी पर सम्पूर्ण शरीर का भार सम्भालकर बैठिये।
दूसरे पैर को उठाकर घुटने के ऊपर की ओर रख दें। सहायता के लिये चाहे एक हाथ दीवार अथवा चौकी पर रख सकते हैं। सन्तुलन बन जाने पर हाथों को अपने कूल्हों के ऊपर टेक दें लेकिन कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिये, दृष्टि सामने की ओर रहे।
इसी स्थिति में कुछ देर रुके रहने के पश्चात पूर्व स्थिति में आकार शरीर को आराम करायें। बाद में इसी क्रिया द्वारा दूसरे पैर के पंजे पर इस आसन को दुहराइये।
▪️पादांगुष्ठासन के लाभ -
इस आसन का अभ्यास करने से वीर्य के दोष दूर हो जाते है।
इससे पैर के पंजे अधिक बलवान होते हैं।
इस आसन में टांगों की मासपेशियो सबल तथा सशक्त होती है।
▪️पादांगुष्ठासन में सावधानी -
इस आसन में पहले एक पैर को घुटने से मोड़कर उसके पंजे पर बैठें तथा दूसरे पैर को उठाकर घुटने पर रख दें।
इस आसन को करते समय आपकी कमर बिल्कूल सीधी होनी चाहिये।
आपका सम्पूर्ण शरीर केवल पंजों के अंगूठे पर टिका हो।
स्त्रियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
▪️पादांगुष्ठान करने का समय -
इस आसन को आप प्रतिदिन तीन-चार बार कर सकते हैं।
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